Saturday 24 September 2016

(8.5.2) Ekadshi Vrat Vidhi (in HindI) एकादशी व्रत विधि

Ekadashi Vrat / Ekadshi Vrat Vidhi /एकादशी व्रत विधि - 

एकादशी व्रत विधि -
सनातन धर्म के अनुसार एकादशी का व्रत आत्म कल्याण का साधन है। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए व्यक्ति इसके द्वारा इहलौकिक और पर लौकिक कल्याण प्राप्त कर सकता है। एकादशी व्रत दशमी , एकादशी तथा द्वादशी इन तीन दिन में संपन्न होता है।  
एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि के दिन शाम सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि में भगवान में मन लगाते हुए सोना चाहिए।
एकादशी के दिन जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रद्धा और भक्ति सहित भगवान् का पूजन करें। उत्तम प्रकार के गंध , पुष्प ,धूप ,दीप ,नैवेद्य आदि अर्पण करके  नीराजन करें। स्तोत्र पाठ तथा भगवान के स्मरण में दिन व्यतीत करे तथा निराहार रहे।  यदि निराहार नहीं रह सके तो, फलाहार लिया जा सकता है। रात्रि में कथा वार्ता ,स्तोत्र पाठ अथवा भजन आदि के साथ जागरण करे।
द्वादशी के दिन ब्राह्मण को जिमाकर  उपवास कर्ता  को भोजन करना चाहिए। जो ऐसा नहीं कर सके तो उसे ब्राह्मण भोजन योग्य आटा, घी दाल आदि किसी मंदिर में या किसी सुपर को देना चाहिए।
एकादशी के दो भेद हैं - नित्य और काम्य।  निष्काम भाव से की जाने वाली नित्य और धन, पुत्र आदि की प्राप्ति अथवा रोग दोषादि की निवृत्ति के लिए की जाने वाली एकादशी काम्य होती है।
उद्यापन - जब व्यक्ति अधिक उम्र या व्याधि आदि के कारण एकादशी व्रत को निरंतर नहीं रख सके तो एकादशी व्रत का उद्यापन करके इसकी समाप्ति की जा सकती है।