Saturday 24 September 2016

(8.5.1) Ekadashi /एकादशी / Importance of Ekadashi (in Hindi )

Importancre of Ekadashi Ekadashi ka Mahatva/ एकादशी / एकादशी का महत्व  

हिन्दू पंचांग के अनुसार एक मास  में दो पक्ष होते हैं -यथा कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।  प्रत्येक पक्ष में पन्द्र्ह तिथियाँ होती हैं। इस प्रकार एक मास में दो एकादशी होती है और एक वर्ष में 24  एकादशी होती हैं। अधिक मास  हो तो उसमें भी दो एकादशी होती हैं। इस प्रकार अधिक मास की एकादशी सहित 26  एकादशी हो जाती हैं। इन 26 एकादशी के अपने अपने नाम होते हैं।   
एकादशी का महत्व - 
सनातन धर्म में आत्म कल्याण के कई साधन हैं। उनमें से व्रत तथा उपवास भी मुख्य हैं। उपवास शारीरिक तप हैं। गृहस्थ में रहते हुए मानव इनके द्वारा इहलौकिक और परलौकिक कल्याण प्राप्त कर सकता है। एक समय भोजन करना व्रत और दिनभर अन्न का त्याग करना उपवास कहलाता है। एकादशी का व्रत तीन दिन में समाप्त होता है।  एकादशी को हिन्दू संस्कृति के अनुसार एक पवित्र तिथि माना जाता है।  एकादशी व्रत करने से जाने - अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष प्राप्त होता है।  एकादशी व्रत सुख और धन देने वाला व्रत है। इस व्रत को करने वाला अगले जन्म में धनी कुल में पैदा होता है। एकादशी व्रत से व्यक्ति की  इन्द्रियां नियंत्रित होती हैं , भक्ति का भाव जागृत होता है और ह्रदय की  पवित्रता बढ़ती है। 
एकादशी व्रत विधि - 
एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि के दिन शाम सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।  रात्रि में भगवान में मन लगाते हुए सोना चाहिए।  एकादशी के दिन जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रद्धा और भक्ति सहित भगवान् का पूजन करें। उत्तम प्रकार के गंध , पुष्प ,धूप ,दीप ,नैवेद्य आदि अर्पण करके  नीराजन करें। स्तोत्र पाठ तथा भगवान के स्मरण में दिन व्यतीत करे तथा निराहार रहे।  यदि निराहार नहीं रह सके तो, फलाहार लिया जा सकता है। रात्रि में कथा वार्ता ,स्तोत्र पाठ अथवा भजन आदि के साथ जागरण करे। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को जिमाकर  उपवास कर्ता  को भोजन करना चाहिए।