Thursday 15 September 2016

(7.1.3) Tri Bal Shuddhi / त्रिबल शुद्धि

Tribal Shuddhi / Tribal Shuddhi  in muhurat for marriage /त्रिबल शुद्धि 

त्रिबल शुद्धि क्या है? What is Tribal Shuddhi  (For English translation click here)
विवाह के समय मुहूर्त में त्रिबल शुद्धि देखी जाती हैं जिसमे वर और कन्या के लिए चंद्रबल, वर के लिए सूर्यबल तथा कन्या के लिए गुरु का बल देखा जाता है। भारतीय ज्योतिष में जिन सिद्धांतो को प्रतिपादित किया है उनमें निसंदेह व्यवहारिक पक्ष एवं तार्किक आधार को ध्यान में रखा गया है। ऋषि मुनियों के गहन चिंतन व मनन का परिणाम है कि हमारे पास जीवन में आनेवाले सभी संस्कारों एवं अन्य कार्यों के लिए धरोहर के रूप में उपयुक्त मार्गदर्शन उपलब्ध है। विवाह के समय चंद्रबल, सूर्यबल और गुरुबल देख जाता है।
चन्द्रबल / चंद्र शुद्धि क्यों देखी  जाती है? 
चन्द्रमा मन का कारक है। एकाग्रता व निरंतरता चंद्रबल (शुद्धि) पर आधारित होती है। प्रत्येक कार्य की सफलता उसकी प्रक्रिया में एकाग्रता पर आधारित होती है। विवाह के मुहूर्त में वर और कन्या दोनों की राशि   से चंद्रबल देखा जाता है ताकि विवाह के बाद उनके गृहस्थ जीवन में उनका मन स्थिर रहे और ध्यान की एकाग्रता बनी रहे।
सूर्य शुद्धि / सूर्य बल क्यों देखा जाता है ?
विवाह के बाद गृहस्थी के लिए संसाधन जुटाना पुरुष का कर्तव्य है। सूर्य आत्मा का कारक है तथा आत्मविश्वास का प्रतीक है। अतः विवाह के मुहूर्त में वर की राशि से सूर्य का बल देखा जाता है।
गुरु शुद्धि / गुरुबल क्यों देखा जाता है ? 
गुरु विवेक, बुद्धि और समझ का करक है। विवाह के पश्चात परिवार में सामंजस्य, सोहार्द्र बनाये रखने में महिला की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए कन्या की राशि से गुरुबल देखा जाता है ताकि वह कन्या विवाह के पश्चात आपसी समझ से गृहस्थी के दायित्व को निभा सके, परिवार में समरसता बनाये रखे।
श्रेष्ठ चन्द्रमा:- जब चन्द्रमा जन्म राशि से 1,2,3,5,6,7,9,10,11 वां हो तो श्रेष्ठ माना जाता है।
नेष्ट  चन्द्रमा:- जब चन्द्रमा जन्म राशि से (प्रसिद्द नाम से)4,8,12 वां हो तो नेष्ट  माना जाता है।
परिहार - पाणिग्रहण  में  बारहवाँ चन्द्रमा वर को तो ग्राह्य है परन्तु कन्या के लिए नेष्ट (अशुभ) माना जाताहै। 
श्रेष्ठ सूर्य:- जब सूर्य वर की राशि से 3,6,10,11 वां हो तो श्रेष्ठ माना जाता है।
पूज्य सूर्य:- जब सूर्य वर की राशि से 1,2,5,7,9 वां हो तो सूर्य का जप, दान, पूजा आदि करने से शुभ होता है।
नेष्ट  सूर्य:- जब सूर्य वर की राशि से 4,8,12 वां हो तो ऐसा सूर्य नेष्ट (अशुभ) माना जाता है।
परिहार:- जब सूर्य उच्च राशि पर हो, स्वगृही, मित्र क्षेत्री या वर्गोत्तामी हो तो विशुद्ध माना जाता है।
श्रेष्ठ गुरु:- जब गुरु कन्या की राशि से 2,5,7,9,11 वां हो तो श्रेष्ठ माना जाता है।
पूज्य गुरु:- जब गुरु कन्या की राशि से 1,3,6,10 वां हो तो गुरु का जप, दान, पूजा आदि से शुभ होता है।
नेष्ट  गुरु:- जब गुरु कन्या की राशि से 4,8,12 वां हो तो नेष्ट  माना जाता है।
परिहार:- जब गुरु अपनी उच्च राशि में हो या स्वराशि या मित्र की राशि में हो या वर्गोत्तमी हो तो विशुद्ध माना जाता है। यह विवाह में ग्राह्य है।
(सन्दर्भ - बालबोध ज्योतिष सार समुच्चय पेज 80 तथा शिवशक्ति पंचांग पेज 105  तथा ज्योतिष ज्ञान चन्द्रिका पेज 92 , 93 , 94 )
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