Wednesday 14 September 2016

(7.1.2) Kaal Sarp Yog kya hai / Janm Kundali men Kaal Sarp Yog

Kaal Sarp Yog Kya Hai ? काल सर्प योग / काल सर्प दोष 

काल सर्प योग (कितनी सच्चाई कितनी भ्रान्ति ?)
वर्तमान में कालसर्प योग के बारे में बहुत कुछ कहा और सुना जाता है | कई लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति अपने जीवन में तरह - तरह की समस्याओं  का सामना करता है और उसके द्वारा किये गए अधिकतर प्रयासों का उसे कोई लाभ नहीं मिलता है। जबकि वास्तविक स्थिति यह नहीं है | यह इस योग का केवल डराने वाला पक्ष है | केवल कालसर्प योग से ही कुण्डली की सब बातें तय नहीं हो जाती हैं |इस योग के बारे में बिन्दुवार विश्लेषण व जानकारी से सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा | बिन्दुवार जानकारी इस प्रकार है -  
योग किसे कहते हैं?
जब दो या दो से अधिक ग्रह किसी जातक की कुंडली में किसी राशि में साथ- साथ या किसी अंतर पर स्थित होते हैं तो वे एक दूसरे को प्रभावित करते हैं. ग्रहों की इस स्थिति को ज्योतिष की भाषा में योग कहते हैं | ग्रहों की इन परस्पर शुभ स्थितियों से शुभदायक योग बनते हैं और अशुभ स्थितियों से अशुभदायक योग बनते हैं.   
शुभ योगों से कुंडली सबल हो जाती है और अशुभ योगों से निर्बल हो जाती है। तथाकथित कालसर्प योग भी उनमें से एक है, जिसे अशुभ योगों की श्रेणी में माना जाता है | वर्तमान में तो कालसर्प योग की इतनी अधिक चर्चा होती है जैसे कि जन्म कुंडली का फलादेश इस योग से ही तय होता है और कुण्डली में बने शेष योग कोई महत्व नहीं रखते | जबकि वास्तविकता यह नहीं है | कुण्डली में बने अन्य योगो की अनदेखी करके तथा ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा व गोचर की स्थिति पर ध्यान नहीं देकर सही फलादेश किया ही नहीं जा सकता | 
काल सर्प योग भयावह क्यों बन गया है ?
काल सर्प योग एक अशुभ योग है। इसके नाम ने इसे और भी अधिक डरावना बना दिया है - काल का अर्थ है "मृत्यु" तथा सर्प का अर्थ है "साँप" जो बहुत ही कष्ट दायक स्थिति का  संकेत देता है।इसके अतिरिक्त कुछ लोग इसके प्रभाव का इस भयावह तरीके से वर्णन करते हैं जिससे व्यक्ति काल्पनिक भय से भर जाता है और जीवन में अमंगल या अशुभ घटनाओं की कल्पना करने लगता है |
काल सर्प योग कैसे बनता है ?
वर्तमान परिभाषा के अनुसार   कुंडली में सात ग्रह - सूर्य ,चन्द्रमा , मंगल ,बुध , गुरु , शुक्र और शनिजब राहु और केतु के बीच स्थित हों तो ऐसी कुंडली में काल सर्प दोष बनता है।
कुछ दैवज्ञ मानते हैं कि जब ये सात ग्रह केतु और राहु के बीच होते हैं तब भी कुण्डली में कालसर्प योग का निर्माण हो जाता है |
जबकि कुछ कहते हैं कि सातों ग्रह राहु – केतु के बीच आतें हैं तब ही काल सर्प योग बनता है न कि केतु – राहु के बीच आने पर |
कुछ देवज्ञ मानते हैं कि कोई भी ग्रह राहु - केतु के बीच में न होकर बाहर आ जाये, तो यह आंशिक कालसर्प  योग कहलाता है और कुछ अन्य के अनुसार इस स्थिति में काल सर्प योग का निर्माण ही नहीं होता है |
कुछ विद्वान मानते हैं कि कालसर्प योग 12 प्रकार का होता है जबकि कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार कालसर्प योग 288 प्रकार का होता है | कालसर्प योग 288 प्रकार का होने पर तो यह योग अधिकांश व्यक्तियों की कुण्डली में उपस्थित होगा तो क्या वे सब इस योग से पीड़ित होंगे ? 
ये सब मतान्तर क्यों हैं ? क्योंकि ज्योतिष के प्राचीन तथा प्रमाणिक ग्रंथों में कालसर्प योग का कोई उल्लेख नहीं होने से अलग – अलग लोगों ने अपने अपने अनुभव तथा ज्ञान के आधार पर इस योग के बारे अपनी – अपनी व्याख्या कर दी है |
काल सर्प योग का अशुभ प्रभाव
जो लोग कालसर्प योग को मानते हैं, उनका कहना है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प योग होता है उसके शिक्षा में रूकावट आती है, विवाह में विलम्ब होता है,जीवन में तनाव रहता है, संतान पक्ष से असंतुष्टि रहती है, आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं, व्यवसाय में बाधा आती है, कुंडली के अच्छे योग भी कालसर्प योग के कारण शुभ प्रभाव उत्पन्न नहीं करते,. ऐसा भी कहा जाता है कि उस व्यक्ति को डरावने स्वप्न आते हैं और स्वप्न में साँप दिखते हैं. (जबकि वास्तविकता यह नहीं है. यह केवल डराने वाला पक्ष है. ये बातें कुंडली में अन्य अशुभ योग या योगों के उपस्थित होने से भी हो सकती हैं )
मनोवैज्ञानिक बात – कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका हमारे मन पर शुभ या अशुभ प्रभाव पड़ता है | जैसे किसी को कहा जाये कि जब आप किसी मंत्र का आँखें बंद करके जप करें तो उस समय आपके दिमाग में जल में तैरती हुई मछली  की आकृति नहीं आनी चाहिए या नहीं दिखनी चाहिये, तभी यह मंत्र अपना प्रभाव दिखायेगा I तो यह मानकर चलो यह आकृति आपको अवश्य दिखेगी I ऐसे ही आपको कहा जाये कि कुंडली में काल सर्प योग होने पर उस व्यक्ति को स्वप्न में साँप दिखाई देता है तो निश्चित ही आपको सपने में साँप दिखने लगेगा | इसी प्रकार आपके जीवन में कोई कठिनाई आयी तो आप उसे कालसर्प योग से जोड़ कर देखने लगेंगे,यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है|    
कालसर्प योग की वास्तविकता  -
कुंडली में राहु - केतु  की स्थिति से ही सब कुछ तय नहीं हो जाता। शेष सात ग्रहों का और उनकी स्थिति का भी अपना महत्व है।उनकी शुभ या अशुभ स्थिति कुंडली को प्रभावित करती है।कुंडली में उच्च राशि  में स्थित ग्रह , शुभ योग जैसे - गज केसरी योग , राज योग या अन्य कोई शुभ योग हो या राहु और केतु भी अच्छी स्थिति में हो या अपनी उच्च राशि में हो, तो तथाकथित काल  सर्प योग प्रभाव हीन हो जाता है।
इसके अतिरिक्त वैदिक ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में काल सर्प योग का कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन बाद के विद्वानों ने इस योग का उल्लेख किया है और धीरे  - धीरे इसे भयावह योग के रूप में पहचान मिलती जा रही है।लोग इसके नाम से ही हताश और निराश हो जाते हैं। जबकि  वास्तविकता यह है कि कठिनाइयाँ हरेक व्यक्ति के जीवन में आती हैंअसफलता प्रत्येक को मिलती  हैं, कष्ट , बीमारियाँ ,दुर्घटनायें जीवन के साथ जुडी हुई हैं। इनको यों ही कालसर्प योग से जोड़ दिया जाता है. कुंडली में कुछ दूसरे अशुभ योग, शनि साढ़ेसाती या शनि  की ढेया आदि भी इन घटनाओं के कारण बनते हैं न कि कालसर्प योग | इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण बात है कि प्रत्येक ग्रह एक राशि पर एक निश्चित समय तक रहता है | यदि चन्द्रमा केतु के पास वाले भाव में हो तो उसे जिस राशि  पर राहु है उस राशि से आगे बढ़ने में (अर्थात कालसर्प योग की स्थिति समाप्त होने में) लगभग बारह दिन या  अधिक दिन का समय लग जाता है तो क्या इस बारह दिन की अवधि में जन्में लाखों लोग इस अशुभ काल सर्प योग से ग्रसित होंगे ? यह सोचनीय और विचारणीय बात है |
अत: यदि किसी की  कुंडली में तथाकथित काल सर्प योग है  तो उसे इस योग से  भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है इसके साथ साथ इस तथ्य को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कुण्डली का विश्लेषण केवल एक योग को देखकर नहीं किया जा सकता इसके लिए ग्रहों की दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा व ग्रहों की गोचर स्थिति का भी ध्यान रखना होता है |
हालाँकि इस योग के प्रति एक बार जमे हुए कुविश्वास को दूर करना बहुत मुश्किल  है अत: व्यक्ति अपने अन्दर आत्म विश्वास भरने व निराशा की भावना को दूर करने के लिए भगवान् शिव की उपासना करे तथा विशेष रूप से महा मृत्युंजय मंत्र या त्र्यक्षर मृत्युंजय मंत्र का जप करे।    
यह भी याद रखिये –
पुण्य से व्याधि का हरण होता है , पुण्य से ग्रह जनित प्रकोपों की शान्ति होती है, पुण्य से शत्रु भी दबाते हैं, जहाँ धर्म है, वहीं विजय है |
उल्लेखनीय बात
यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक कि कई ऐसे व्यक्ति भी हैं जिनकी कुंडली में तथाकथित काल सर्प योग उपस्थित है लेकिन उन्होंने अपने जीवन में अपार सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त की है. उनमें से मुख्य- मुख्य निम्नांकित हैं -  
पण्डित जवाहर लाल नेहरु , मोरारी बापू , धीरुभाई अम्बानी, अमिताभ बच्चन, मोहनलाल सुखाडिया, दिलीप कुमार फिल्म अभिनेता , सचिन तेंदुलकर, आचार्य रजनीश आदि जो विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्ध रखते हैं.


कुंडली विश्लेषण
नाम धीरुभाई अम्बानी , जन्म दिनांक -28.12-1932, जन्म समय 06:37 प्रातःकाल, जन्म स्थान – Veraval 
यदि धीरुभाई अम्बानी की जन्म कुंडली का विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि यह धनु लग्न की कुण्डली है, लग्न में सूर्य और चन्द्रमा हैं , दूसरे भाव में शनि है  तीसरे भाव में राहु है, नवेँ भाव में मंगल और केतु हैं, दशवें भाव में गुरु है और बारहवें भाव में शुक्र और बुध स्थित हैं | इस कुण्डली के तीसरे भाव में राहु के होने से अन्य ग्रह राहु और केतु के बीच में आ गए जिससे तथाकथित कालसर्प योग का निर्माण हो गया |
लेकिन इस कुण्डली में कई शुभ योग हैं जिनके कारण इसमें तथाकथित काल सर्प योग होने पर भी उन्होंने जीवन में सफलता प्राप्त की है. इनकी कुंडली में ग्रहों की शुभ स्थिति और शुभ योग निम्नानुसार हैं
(1)चन्द्रमा से केंद्र स्थान यानि दसवें भाव में गुरु के स्थित  होने से गज केसरी योग का निर्माण हो रहा है. यह योग जातक को तेजस्वी, धनवान, मेधावी, गुणवान, और राजप्रिय बनाता है.
(2)लग्न में भाग्येश सूर्य स्थित है और गुरु का लग्न पर केन्द्रीय प्रभाव है.
(3)गुरु की पाँचवी पूर्ण दृष्टि धन भाव पर है और धनेश स्वयं धन भाव में स्थित है. यह स्थिति व्यक्ति को धनवान बनाती है. गुरु की सातवी पूर्ण दृष्टि सुख भाव पर है. यह जातक को सुखी, संतुष्ट, आवास-वाहनादि सुखों से युक्त करती है.
(4)तीसरे भाव में स्थित राहु जातक को साहसी बनता है और ख्याति भी देता है. 
(5)पंचम भाव का स्वामी मंगल भाग्य भाव में मित्र राशि में स्थित है जो भाग्य को बढ़ा रहा है.
(6)भाग्य भाव का स्वामी सूर्य मित्र राशि में लग्न में स्थित होकर भाग्य वृद्धि का योग बना रहा है.
(7)शुक्र बारहवें भाव में स्थित है यह स्थिति  जातक को जीवन के सभी भौतिक सुख देती है.    
यदि उपर्युक्त विवरण को ध्यान में रखें और रचनात्मक तथा सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति बहुत सफलता पाते हैं और बहुत ऊंचाई पर पहुँच जाते हैं, लेकिन साथ ही यह भ्रम भी न रखें कि उन्हें यह सफलता राहु केतु से निर्मित तथाकथित कालसर्प योग के कारण मिली है. वास्तव में यह सफलता उनकी  कुंडली के अन्य शुभ योगों के कारण मिली है. अतः कालसर्प योग का भय मन निकाल दें और ईश्वर में विश्वास रखते हुये अपना कार्य करें सफलता अवश्य मिलेगी.