नवरात्र / नवरात्रा / नवरात्रि ( उत्सव )
नवरात्रा कब आते हैं? पूजा विधि क्या है / घट स्थापना कैसे करें / नवरात्र के दौरान किस मन्त्र या स्तोत्र का जप करे? हवन / नवरात्र उत्थापन कब करें
. नवरात्र में प्रयुक्त 'नव' शब्द 'नौ' का और ' रात्र ' शब्द 'रात्रि' का प्रतीक है। नवरात्र का अर्थ नव अहो रात्र के रूप में भी उल्लिखित है। इस प्रकार जो पर्व नौ दिन और नौ रात तक चले वही नवरात्र है।इसे शक्ति संचय और उपासना -आराधना का पर्व भी माना जाता है। ये नौ दिन देवी पार्वती , लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित हैं। जिन्हें नव दुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की, अगले तीन दिन लक्ष्मी के तीन स्वरूपों के और आखिर के तीन दिन सरस्वती के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों के नाम हैं :-1 शैल पुत्री 2. ब्रह्म चारिणी 3. चंद्रघंटा 4. कूष्मांडा 5. स्कंदमाता 6. कात्यायनी 7. काल रात्रि 8. महा गौरी 9. सिद्धि दात्री।
वर्ष में चार बार नवरात्र पर्व मनाये जाते हैं -
चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों को प्रकट नवरात्र कहा जाता है और माघ तथा आषाढ़ माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रा कहा जाता है।
पूजा विधि एवं घट स्थापना या कलश स्थापना :-
नवरात्र के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घट स्थापना या कलश स्थापना का विधान है। घट स्थापना के लिए मिट्टी या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें। कलश के मुंह पर नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर अशोक के पत्तों सहित रखें। कलश के नीचे बालू मिट्टी की वेदी बनायें व इसमें जौ के दाने व पानी डाल दें। इस वेदी पर कलश रखदें । कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनायें । वेदी की रेत में जौ बोने के बजाय अलग से किसी पात्र में भी मिट्टी डाल कर जौ बोये जाते हैं, जिन्हें जुवारे कहते हैं। घट स्थापना या कलश स्थापना मूल रूप से देवी दुर्गा का आव्हान है।
मूर्ति या तस्वीर स्थापना -
घट या कलश के पास एक पाटे पर लाल वस्त्र बिछा कर माँ भगवती की तस्वीर भगवान राम , हनुमान जी या अपने ईष्ट देव की तस्वीर रखें।
आसन - देवी उपासक लाल या सफेद रंग के ऊनी आसन का प्रयोग करें। पूर्व की तरफ मुँह करके पूजा , मंत्र , हवन एवं अनुष्ठान समाप्त करें।
नवरात्र के दौरान पाठ- जप आदि :-
साधक अपनी इच्छानुसार दुर्गासप्तशती का पाठ या दुर्गा के किसी मन्त्र का जप करे।
(या ) सुन्दर काण्ड का पाठ
(या ) राम रक्षा स्त्रोत का पाठ
(या) गायत्री मन्त्र जप
(या ) रामचरित मानस पाठ
पाठ या मन्त्र जाप का फल - नवरात्रि का समय वर्ष के श्रेष्ट समय में से एक है अत: इस अवधि में किये गए जप - तप , व्रत, उपवास का फल तुलनात्मक रूप से ज्यादा मिलता है।जप - तप या पाठ निष्काम भाव से किया जाये या सकाम भाव से, सभी का सुफल मिलता है, सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए जप या पाठ किया जाता है तो उस उद्देश्य की अवश्य पूर्ति होती है।
कुमारी पूजन - अपनी कुल परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी के दिन दो वर्ष से नौ वर्ष तक की उम्र की नौ कन्याओं को अपने घर बुलाकर उनकी पूजा करें, उन्हें भोजन करायें व यथा शक्ति दक्षिणा दें।
हवन -
नवरात्रि के दौरान जितने मन्त्रों का जप किया जाता है उसके दसवें भाग का हवन दसमी के दिन या नवमी के दिन किया जाता है।(यदि हवन नहीं किया जा सके तो कुल जपे हुये मन्त्रों की संख्या के दसवें भाग का जप और करें।)
नवरात्र उत्थापन -
नवरात्र के नवें या दसवें दिन बोये हुए जवारे उग कर बड़े हो जाते हैं , उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। घट के जल का आचमन कर उसे अपने शरीर पर स्पर्श कराया जाता है तथा कुछ जल को अपने घर में भी छिड़का जाता है। फिर विधि विधान पूर्वक पूजा करके समस्त पूजा सामग्री को जलाशय में विसर्जित किया जाता है।