Friday 9 October 2015

(2.1.10) Hazlitt's Letter to his Son / On the conduct of Life (in Hindi)

जीवन में आचरण (हेजलिट का पत्र उसके पुत्र के नाम ) William Hazlitt's Letter (in Hindi)

'जीवन में आचरण 'एक पत्र है जिसे  हेजलिट  ने अपने पुत्र को वर्षों पूर्व लिखा था। इस पत्र में बुद्धिमतापूर्ण सलाह है। हेज़लिट चाहता था कि उसका पुत्र विद्यालय के जीवन को अपने भावी जीवन की तैयारी माने। वह चाहता था कि उसका पुत्र खुला मस्तिष्क रखे,दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल सके और सम्मानजनक तरीके से दूसरों के साथ अपने मत भेद सुलझा ले।'
 पत्र का सारांश निम्नानुसार  है :-
1." हमेशा ही अच्छे की आशा करो।"
2. "यदि बातें  तुम्हारी अपेक्षाओं के विपरीत हो तो तुम्हे उनको बदलने का प्रयास करना चाहिए। यदि तुम उन्हें बदल नहीं सको तो उन्हें धैर्यपूर्वक सहन करो।"
3. "चीजें हमेशा ही वैसी नहीं होती है जैसा तुम उन्हें देखना चाहते हो। "
4. "यदि तुम बुरा घटित होने की आशा करोगे तो तुम अपने द्वेष या अड़ियल रुख से उन बातों  को पहले से भी ज्यादा ख़राब बना दोगे। इसलिये तुम्हें  कभी भी बुराई की प्रत्याशा नहीं करनी चाहिए। "
5."किसी के बारे में पूर्वाग्रह का सृजन करना गलत बात है , और वह भी केवल इसलिये कि तुम उनके बारे में कुछ नहीं जानते हो। यदि तुम ऐसा  करते हो और दूसरों के बारे में बुरा सोचते हो तो, शीघ्र ही वे  तुम्हारे  दुश्मन बन जायेंगे  ।"
6. "तुम्हें दूसरों  को बुरा नहीं समझना चाहिए जब तक वे तुम्हारे प्रति खराब व्यवहार नहीं करें। फिर तुम्हें उस बुराई से बचने का प्रयास  करना चाहिये जो तुम्हें  उनमें  दिखाई दे।"
7. हेज़लिट अपने पुत्र से कहते हैं ," तुम्हें किसी से भी बिलकुल भी घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की  घृणा का अर्थ होता है, किसी दूसरे की हानि में अपनी जीत समझना और प्रसन्न होना।"
8." तुम्हें   यह भी जानना चाहिए कि इस संसार में तुम्हारे  अतिरिक्त अन्य लोग भी हैं और उनकी भी कामना, पसंद या नापसंद होती है। इसलिए तुम्हें  उनकी इच्छाओं को स्वीकार करना तथा उनकी पसंद नापसंद को सहन करना सीखना चाहिए।"
9. "तुम्हें दूसरे लोगों की वेशभूषा की आलोचना नहीं करनी चाहिए और न ही इस के कारण उनसे घृणा करनी चाहिए। तुम्हारे पास अच्छे कपड़े हैं परन्तु इसके कारण तुम्हें अपने आप को ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं समझाना चाहिए।"
 10. "तुम्हें लोगों  की आलोचना या उनसे किसी ऐसी बात के लिए घृणा नहीं करनी चाहिए जिसके लिए वे विवश हैं,और कम से कम उनकी निर्धनता के लिए तो बिलकुल नहीं।"
11 . "तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि तुम सब लोगों में से एक हो और तुम्हें समाज में अपने स्थान को कभी नहीं भूलना चाहिए। सच्ची समानता ही सच्ची नैतिकता व सच्ची बुद्धिमता है।"
12 ."जितना जल्दी तथा जितना कम कष्ट हो सके, तुम्हें  अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लेना चाहिए। "
=========