Saturday 23 May 2015

(5.1.4) Solah Sanskaar in Hinduism (in Hindi)

Solah Sanskar  हिन्दुओं के सोलह संस्कार 


संस्कार किसे कहते हैं ?/ संस्कार क्या होते हैं ?
आद्य शंकर के अनुसार - " संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य   गुणांघानेन वा स्याद्योषाप नयनेन वा। " ( 1/1/4 ब्रह्म सूत्र भाष्य )अर्थात जिसका संस्कार किया जाता है , उसमें गुणों का आरोपण अथवा उसके दोषों को दूर करने के लिए जो कर्म किया जाता है , उसे संस्कार कहते हैं। गौतम धर्म सूत्र में कहा गया है कि , " संस्कार उसे कहते हैं , जिससे दोष हटते हैं और गुणों का उत्कर्ष होता है। "
सोलह संस्कार - 
जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की मिट्टी को विधानानुसार संस्कारों द्वारा शोध कर उससे लोहा , तांबा, सोना आदि बहुमूल्य धातुएं प्राप्त कर लेते हैं और जिस प्रकार आयुर्वेद रसायन बनाने वाले ओषधियों को कई प्रकार के रसों में मिश्रित कर उन्हें गजपुर , अग्निपुर विधियों द्वारा कई बार तपा कर संस्कारित कर उनसे चमत्कारी ओषधियों का निर्माण करते हैं , ठीक उसी प्रकार मनुष्य के लिए भी समय - समय पर विभिन्न आध्यात्मिक उपचारों का विधान कर उन्हें सुसंस्कृत बनाने की , अनघढ़ से सुदृढ़ बनाने की महत्पूर्ण पद्दति भारतीय तत्ववेत्ता ऋषियों ने विकसित की थी , इसी को षोडष (सोलह ) संस्कार नाम दिया है।
ये षोडष (सोलह) संस्कार इस प्रकार हैं - 1. गर्भाधान संस्कार 2. पुंसवन 3. सीमन्तोन्नयन। (ये प्रथम तीन संस्कार बालक के जन्म से पूर्व के संस्कार हैं।)
4. जातकर्म 5. नामकरण 6. निष्क्रमण 7. अन्नप्राशन 8. चूडा करण (मुंडन )9. कर्णवेध(ये छ: संस्कार जन्म के बाद बाल्यावस्था के हैं।)  10.विद्यारम्भ  11. उपनयन (यज्ञोपवीत )12. वेदारम्भ 13. केशान्त 14. समावर्तन 15. विवाह 16. अन्त्येष्टि संस्कार।
1. गर्भाधान संस्कार - यह प्रथम संस्कार है जो ऋतु स्नान के पश्चात का कर्तव्य है। भार्या के स्त्री धर्म में होने के सोलह दिन तक वह गर्भ धारण योग्य रहती है।
2. पुंसवन संस्कार - इसे गर्भस्थ  शिशु के समुचित विकास के लिए किये जाता है। प्राय:तीसरे माह से गर्भ में शिशु का आकार बनने लगता है तब यह संस्कार संपन्न किया जाता था । इस संस्कार में गर्भिणी स्त्री के दाहिने नासिका छिद्र में वट वृक्ष की छाल का रस छोड़ा जाता था। यह रस गर्भ पात के निरोध तथा श्रेष्ठ सन्तति के जन्म के निश्चय के उद्देश्य से छोड़ा जाता था।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार -गर्भाधान के अनन्तर छठे या आठवें माह में इस संस्कार को किया जाता है। राजस्थान में इस संस्कार को आठवाँ पूजन भी कहते हैं। इस संस्कार में प्रतीकों द्वारा माता को श्रेष्ठ चिंतन , अपने संस्कारों में शिशु के हित की कामना करते रहने की प्रेरणा दी जाती है।
4. जातकर्म संस्कार - यह संस्कार जन्म के तुरंत बाद संपन्न होता था। नाभि बंधन के पूर्व वेद  मन्त्रों के उच्चारण के साथ यह संपन्न होता था। अब सभी प्रसव अस्पतालों में होते हैं अत: इस संस्कार की उपयोगिता समाप्त हो गई है।
5.नामकरण संस्कार - सामान्यतया यह संस्कार जन्म के दसवें दिन संपन्न होता है। इसमें शिशु का नाम रखा जाता है। इस के लिए उसे शहद चटाया जाता है, सूर्य के दर्शन करा कर , भूमि को नमन कराया जाता है। फिर एक थाली में उस शिशु का नाम लिख कर , सबको दिखा कर आचार्य मन्त्रोंच्चारण के साथ उस नाम की घोषणा करते हैं।
6. निष्क्रमण संस्कार - शिशु के जन्म के तीसरे या चौथे माह में इसे संपन्न किया जाता था। इस संस्कार में सूर्य व नक्षत्रों का पूजन किया जाता था। अब इस संस्कार को नहीं किया जाता है।
7 . कर्णवेध संस्कार - इस संस्कार में शिशु के कानों में छिद्र किया जाता है। इस संस्कार  को शिशु के जन्म के छठे या सातवे या आठवें  माह में किया जाता है  या बाद में किसी भी विषम वर्ष में किया जाता है । अब इसका प्रचलन लगभग समाप्त हो गया है।
8. अन्नप्राशन्न संस्कार - शिशु के जन्म के छठे माह में किया जाता है। इसमें शिशु को प्रथम आहार ग्रहण कराने के साथ यह भावना की जाती है कि बालक हमेशा सुसंस्कारित अन्न ग्रहण करे।
9. चूडाकरण (मुंडन ) संस्कार - यह संस्कार जन्म के पश्चात प्रथम वर्ष या तृतीय वर्ष की समाप्ति के पूर्व किया जाता है। मुंडन किसी तीर्थ स्थान , देवस्थान पर किया जाता है  ताकि सिर से उतारे गए बालों के साथ निकले किसी भी प्रकार के कुसंस्कारों का तीर्थ चेतना द्वारा शमन हो सके तथा सुसंस्कारों की स्थापना हो।
10. विद्यारम्भ संस्कार - आयु के पांचवें वर्ष में , जब बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता है तब इस संस्कार को  संपन्न किया जाता है। गणेश व सरस्वती के पूजन के माध्यम से यह संस्कार देने वाली विद्या तथा ज्ञानार्जन करने वाली कला उल्लास की देवी सरस्वती को नमन कर उनसे प्रेरणा ग्रहण करता है फिर विद्या देने वाले गुरु को बालक अभिवादन करता है और गुरु बालक को तिलक लगा कर आशीर्वाद देता है।
11.उपनयन (यज्ञोपवीत ) संस्कार - सामान्तया आठ -दस वर्ष की आयु में यह संपन्न किया जाता है। यज्ञोपवीत के धारण के साथ ही मनुष्य का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है।
12. वेदारम्भ संस्कार - बालक को गुरुकुल में वेदों की शिक्षा ग्रहण करने के लिये भेजा  जाता था।
13. केशान्त संस्कार - यह संस्कार सिर के बालों को कटाने से सम्बंधित है। यह मुंडन संस्कार की तरह ही होता है। ब्राह्मण के लिए सोलह वर्ष , क्षत्रीय के लिए बाईस वर्ष और वैश्य के लिए चौबीस वर्ष की उम्र निर्धारित थी।
14. समावर्त्तन संस्कार - यह संस्कार गुरुकुल में बालक की औपचारिक शिक्षा की समाप्ति से सम्बंधित है। इस संस्कार के बाद गुरुकुल छोड़ कर व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है।
15. विवाह संस्कार -  इसमें पुरुष और महिला अपना पृथक अस्तित्व समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई बन कर एक परिवार संस्था की नींव डालते हैं।
16.  अन्त्येष्टि संस्कार - शव को स्नान करा कर , संकल्प व पिण्ड दान कर के शव को शय्या पर रख कर श्मशान यात्रा प्रारंभ होती है। यज्ञीय कर्मकांड अन्त्येष्टि यज्ञ के रूप में संपन्न किया जाता है।