Thursday 18 December 2014

(2.1.1) Vyavasaay aur Nishtha

व्यवसाय  के प्रति निष्ठा

कार्य संसार को गतिमान बनाये रखता है। परिवार, समाज, राष्ट्र और संसार की उन्नति व्यक्तियों द्वारा किये गए कार्य पर ही निर्भर करती है। प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा किये गए कार्य का अपना अलग महत्त्व होता है। कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता, कार्य के प्रति व्यक्ति का सोच छोटा या बड़ा हो सकता है-कार्य नहीं। किसी नगर का मेयर उस नगर का प्रथम व्यक्ति होता है जिसका कार्य नगर का विकास करना होता है परन्तु कल्पना करिये उस नगर के सफाई कर्मचारी अपना कार्य नहीं करें तो पूरा नगर दुर्गन्ध से भर जाएगा और यही स्थिति कुछ दिनों और चलती रहे तो कैसा लगेगा। यह स्थिति यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि सफाई कर्मचारियों का कार्य किसी भी अन्य कार्यों से कम महत्वपूर्ण नहीं होता है। यही बात प्रत्येक व्यवसाय पर लागू होती है।      
अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने व्यवसाय के साथ सही भावना जोड़े। उसे दिव्य निर्देश मानकर करें। व्यवसाय के प्रति श्रेष्ठ भावना चमत्कारी परिणाम प्रकट करती है। यही भावना व्यक्ति को जीवन में आगे बढाती है और उसे ज्यादा जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिये पृष्ठभूमि निर्मित करती है तथ अन्य व्यक्तियों के मन में सम्मान की भावना उत्पन्न होती है।
एक बार पहाड़ी पर रहने वाला एक पंद्रह वर्षीय बालक अपने भाई को कपडे में पीठ पर बांधकर पहाड़ी के ऊपर बने हुए उसके घर ले जा रहा था। मार्ग में मिले पर्यटक ने आगे झुककर चलते हुए उस बालक को देखा और पूछा  "तुम इस बोझ को कहाँ ले जा रहे हो ?" बालक ने उत्तर दिया "यह बोझ नहीं, मेरा भाई है।" घटना बहुत छोटी है परन्तु इसमें बड़ा सन्देश है कि हम किसी भी कार्य को बोझ समझकर नहीं करें। यह बात हमारी सफलता का मापदंड बनती है तथा कार्य को पूर्णता तक पहुंचती है।
कुछ कार्य ऐसे हो सकते है जो हमें उबाने वाले प्रतीत हों परन्तु उसी कार्य को उत्साह और उल्लास की भावना के साथ करें तो वही कार्य सरस बन जाता है। राजस्थान में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं,  जब खेत पर कार्य करती हैं तो कार्य को सरस  बनाने के लिए सामूहिक रूप से गीत गाती हैं। इससे श्रम से भरा कार्य पिकनिक की तरह लगाने लगता है।
जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को प्रसन्नता, निष्ठा और ईमानदारी से करता है तो उस कार्य के साथ गरिमा  और बड़प्पन जुड़ जाता है तथा कार्य करने वाले का महत्त्व बढ़ जाता है क्योकि महत्त्व का सम्बन्ध कार्यप्रणाली से होता है। कार्य चाहे कितना भी बड़ा या छोटा हो उसे जिस शक्ति , भावना और उत्साह के साथ किया जाता है इसी से व्यक्ति के उद्देश्य  की श्रेष्टता निर्धारित होती है। यही श्रेष्टता व्यक्ति के कार्य को उच्चता प्रदान करती है जिससे वह सामान्य व्यक्ति से अलग दिखने लगता है। इसके विपरीत कार्य चाहे कितना ही बड़ा हो यदि उसे हीन भावना और घटिया उद्देश्य के साथ किया जाए तो वह घटिया और गौरवहीन बन जाएगा और यही स्थिति उस कार्य के कर्ता की भी  होती है।